सहती धरा
महावट दुश्वारीतो खिले फुलवारी
मही जानती
यदि सहा ना कष्ट
मच जाएगी त्राही।
पतझड़ से
तरू और लताएंवस्त्रहीन हो जाएं
शीत ऋतु आ
चांदी से चमकते
हिम वस्त्र ओढ़ाए।
ओढ़े हिम की
विश्वा जब चादरलगे स्वर्ग की हूर
तन चमके
चांदी सा चम-चम
सूरि छिटके नूर।
छिप गए क्यूँ
भयभीत शीत सेनभद्वीप की ओट
ओ विवस्वान
तुम्हारा उजास ही
है जगती का प्राण।
कैसे अजब
कुदरत के रंगहिम भी दे उजास
हिम गिरती
रजनी यूँ दमके
स्वर्ग का हो आभास।
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