Thursday, February 28, 2013

हिमपात सेदोका


सहती धरा
महावट दुश्वारी
तो खिले फुलवारी
मही जानती
यदि सहा ना कष्ट
मच जाएगी त्राही।

 
पतझड़ से
तरू और लताएं
वस्त्रहीन हो जाएं
शीत ऋतु आ
चांदी से चमकते
हिम वस्त्र ओढ़ाए।

 
ओढ़े हिम की
विश्वा जब चादर
लगे स्वर्ग की हूर
तन चमके
चांदी सा चम-चम
सूरि छिटके नूर।

छिप गए क्यूँ
भयभीत शीत से
नभद्वीप की ओट
ओ विवस्वान
तुम्हारा उजास ही
है जगती का प्राण।

 
कैसे अजब
कुदरत के रंग
हिम भी दे उजास
हिम गिरती
रजनी यूँ दमके
स्वर्ग का हो आभास।

 

No comments:

Post a Comment