करे ठिठोली
छू पवन के झोंके
नाचे लब मुस्कान
मन बासंती
बेबस उड़ा जाए
बौराए अरमान ।
हर्षी प्राकृति
आया बसंत कंत
सजी दुल्हन सी
नव अनंता
अंतस भरा प्यार
किया १६ सिंगार ।
नया सृजन
धरा गगन रंगे
नए रंग में आज
बन-ठन के
चली हवा फूल से
लेके गंध उधार ।
आया बसंत
अलम्स्त प्राकृति
कुदरत के रंग
मस्ती में खोई
शबनम की बूँदें
खुशबुओं के संग ।
दिशा-२ घूमें
गंध ढोल पीटती
हवा मचाए शोर
सृष्टि हैरान
पूछती है आया क्या
बसंत चित्तचोर ।
उतर आता जब भी
मेरे ह्रदय उपवन में
तुम्हारी यादों का
मोहक वसंत
ढुलक जाते हो तुम
मेरी गीली कोरों से
नेह की बूँद बन
रोम-रोम मेरा
महक जाता है
अहसासों की
संदली खुशबु से
उर कमल पर
तिर आते हो
मुलायम रेशमी
तुहिन कण से
दहक उठते हैं
रक्तिम कपोल
तुम्हारी मृदु स्मृतियों से
कर देते हैं झंकृत
अनजाने सुर कोई
ह्रदय की वीणा को
मदमाता मन
थिरकने लगता है
अचीनी थाप पर
बोया था जो रिश्ता कभी
उग आया है
मेरे ह्रदय पटल पर
आभास होता है ज्यों
कुछ पत्तियाँ भी
फूट आई हैं
प्रीत रंग की।