Saturday, February 15, 2014

बसंत सेदोका









 
करे ठिठोली
छू पवन के झोंके
नाचे लब मुस्कान
मन बासंती
बेबस उड़ा जाए
बौराए अरमान


 
हर्षी प्राकृति
आया बसंत कंत
सजी दुल्हन सी
नव अनंता
अंतस भरा प्यार
किया १६ सिंगार


 
नया सृजन
धरा गगन रंगे
नए रंग में आज
बन-ठन के
चली हवा फूल से
लेके गंध उधार


 
आया बसंत
अलम्स्त प्राकृति
कुदरत के रंग
मस्ती में खोई
शबनम की बूँदें
खुशबुओं के संग


 
दिशा- घूमें
गंध ढोल पीटती
हवा मचाए शोर
सृष्टि हैरान
पूछती है आया क्या
बसंत चित्तचोर


 

यादों का वसंत







उतर आता जब भी
मेरे ह्रदय उपवन में
तुम्हारी यादों का
मोहक वसंत
ढुलक जाते हो तुम
मेरी गीली कोरों से
नेह की बूँद बन
रोम-रोम मेरा
महक जाता है
अहसासों की
संदली खुशबु से
उर कमल पर
तिर आते हो
मुलायम रेशमी
तुहिन कण से
दहक उठते हैं
रक्तिम कपोल
तुम्हारी मृदु स्मृतियों से
कर देते हैं झंकृत
अनजाने सुर कोई
ह्रदय की वीणा को
मदमाता मन
थिरकने लगता है
अचीनी थाप पर
बोया था जो रिश्ता कभी
उग आया है   
मेरे ह्रदय पटल पर
आभास होता है ज्यों
कुछ पत्तियाँ भी
फूट आई हैं
प्रीत रंग की।