Friday, November 16, 2012

कागज़ के टुकड़े


पंखुड़ी से हलके यह कागज़ के टुकड़े
लेकिन नहीं आम
वज़न मामूली और शक्ति में बलराम
चंद अंकों से गढ़े और मोहर से सजे
जीवन की समृद्धि के घोतक बने
खीसे से मिलाएँ हाथ तो बनाएँ अभिमानी
रूठ जाएँ खीसे से तो सिखाएँ बेईमानी
मुठ्ठी में भिंचें तो करें अदभुत शक्ति का संचार
पकड़ से हों परे तो फैलाएँ भ्रष्टाचार
बेजान टुकड़े मचाएँ कैसा उत्पात
इनकी बनिस्बत उठें अनगिनित विवाद
माशा से हलके बस रत्ती में तुल जाएँ
बलिष्ट इतने कि आपके मापक बन जाएँ
खन-खन बतियाते है भाषा दमदारी
सर चढ़ कर बोले इनकी ख़ुमारी
क्रूर इतने कि बिन हथियार ही
परस्परता को रौंदा
प्रेम सौह्र्दयता के कलशों को किया औंधा
रिश्तों की चौखट में दीमक बन चिपटे
भीतर से किया खाली बाहर ना दिखते
भाव तुल सकें ऎसा कोई छोड़ा ना तराज़ू
ताकत ही तुलती है इनके आजू-बाजू
जीवन को इन्होंने बना दिया व्यापार
सकल जगत इनसे ही करने लगा प्यार।

 

 

 

 

 

Monday, November 12, 2012

दीपावली

आज अमावस छिपा चाँद है
लगे प्रभा का ज्यों उपवास है
गहन तमस पसरा है चतुर्दिश
अपितु अलोक फिर भी अबाध है
निशा नवेली सजी दुल्हन सी
धरती से अम्बर तक फैला
जग-मग जग-मग सा उजास है
द्वार मुडेरें सुसज्जित लड़ियाँ
चमकें ज्यों कंचन की कणियाँ
उद्दीप्त वर्तिका नन्हें दीपों की
अंधकार की धार काटती
मोमबत्तियाँ और कंदील
दमक रही हैं तम को चीर
रंगोली माड़ी जब द्वार
झूम उठे फिर वंदनवार
गले मिल रहे बंधु-भाई
सरसाए सम्बंध मिठाई
अँजोरी में खुशी नहाई
हँसे अनार मुसकाई फुलझड़ीयाँ
पट-पट बजे पटाखों की लड़ीयाँ
देख सुनहरी छटा धरा पर
गणपति लक्ष्मी मुसकाने लगे
घर-घर जा जन-जन पर अपनी
कृपा आसीस लुटाने लगे
झिलमिल करते नित्य काश
खुशियों के यूँहीं दीप
अपने-पराए खुशियाँ नहाए
रहते सदा करीब।

Sunday, August 5, 2012

जीवन

जीवन तू क्या है जिसे हम समझ ना पाए
उन्मुक्त है गगन में या धरा पे बन्धन
अभिशाप है तू कोई या कोई अभिनन्दन
कोई हास या रुदन है जिसे हम समझ ना पाए
आशा है या निराशा है स्वपन या अभिलाषा
तू सत्य सा अटल है या जादुई तमाशा
कितना है तू अनोखा जिसे हम समझ ना पाए
पल-पल का तू विधाता प्रतिपल है तू मिटाता
कभी उथला कभी गहरा कभी बहता कभी ठहरा
तेरी गति न्यारी जिसे हम समझ ना पाए
कभी फूलों सा खिलता कभी पतझड़ सा झड़ता
कभी झूमें लता सा कभी काँटों सा चुभता
कभी तृण सा खड़ा है जिसे हम समझ ना पाए
तू प्रात: की किरण है या भोर का है तारा
तू चाँद है निशा का या बादल कोई आवारा
तेरे प्रकार कितने जिसे हम समझ ना पाए
कभी आँधी-तूफान कभी खुला आसमान
कभी शोले कभी ऒले कभी सोंधी ब्यार
तेरी महिमा आपार जिसे हम समझ ना पाए
कभी चंचल सी लहरें कभी तपता किनारा
कभी बालू सा झरता कभी पाहान सा ठहरा
तू कैसा मनमौजी जिसे हम समझ ना पाए
तू केवल भरम है या गहरा मर्म है
तू इतिहास कोई या कोई धरम है
यह उलझी सी गुत्त्थी जिसे हम समझ ना पाए
कभी बन-बन के टूटे कभी टूटों को जोड़े
कभी बिछुड़े मिलाए कभी दे-दे बिछोड़े
तू कितना निराला जिसे हम समझ ना पाए
तू खुशियों की सरगम या विरह का गीत
तू ह्रदयों की पीड़ा या मन का मीत
तेरा अजब संगीत जिसे हम समझ ना पाए
कभी प्रेम का सरोवर कभी नफ़रतों की दल-दल
कभी जीत का नगाड़ा कभी हार का बिगुल
यह कैसा चक्रव्यू है जिसे हम समझ ना पाए!