Friday, January 18, 2013

मेरे कुछ माहिया


मुनियों का देश रहा
नारी मुक्त कहाँ
जीवन भर दर्द सहा

 
खुद को जो समझाते
हर इक दूजे को
दोषी ना ठहराते

 
बेटी अपनी होती
यूँही सत्ता फिर
क्या बेफिकर सोती

 
बेटी सब की साँझी
नैया ना डूबे
सब बन जाओ माझी

 

मैं


मैं विधाता की कोई भूल नहीं हूँ
सृष्टि की तमाम खूबसूरत रचनाओं में से
एक सुन्दर रचना हूँ उसकी
तुम्हें आसानी से जो मिल जाती हूँ
इसलिए कोई मोल नहीं समझते हो
मनचाहा व्यवहार कर, कर देते हो
वर्णहीन अवांछनीय जीवन मेरा
केवल ठोकना बजाना पीटना ही तो जानते हो
मेरे जिस्म को जितना अपनी धरोहर समझते हो
काश! मेरे दुख-सुख को भी
उतना ही अपना समझा होता
कब तुमने मेरी दया करुणा और ममता का
मनचाहा लाभ नहीं उठाया
बस बहुत हो गया बहुत सह लिया मैनें
अब और नहीं कदापि नहीं
नहीं सहना है मुझे अब कोई सितम
नहीं बनना है मुझे गांधारी
देखना है मुझे अब केवल अपनी दृष्टि से
क्यूँ बनूँ मैं पांचाली कि
बाँट लो मुझे तुम क्योंकि पुरुष हो
लगा दो मुझे दाव पर अपने बचाव की ख़ातिर
मैं कोई भूमिजा नहीं, जन्मी हूँ मैं भी
तुम्हारी ही तरह माँ की कोख से
सम्पूर्ण अधिकार है मेरा निज जीवन पर
नहीं करना दमन मुझे अपनी इच्छाओं का
सीता नहीं हूँ मैं कि अपने सुख का त्याग कर
ठोकरें खाती रहूँ तुम्हारे साथ
नहीं चलना मुझे अब तुम्हारी बनाई पगड़ंडियों पे
खोजने हैं स्वयं अपने रास्ते
नहीं देनी अब मुझे कोई परीक्षा
स्वयं करनी है अब अपनी रक्षा
नहीं ढ़कना है मुझे तुम्हारी पशुता को
अपने मौन की चादर से
नारी हूँ मैं
"शक्ति का अवतार
भुनानी होगी मुझे अब
निज शक्ति स्वयं से।

 
 
 

नारी


नारी की अस्मिता लुट रही
आज सरे बाज़ार
महानगर में आँख मूँद के
बैठी है सरकार
गाँव शहर क्या बन गए जंगल 
नित होता नारी का शिकार
पुरुष प्रधान देश है अपना
पुरुष लाज का पहरेदार
लाज के पहरेदार लूट रहे
लाजवती का दारमदार
चीरहरण आखेट चहुँ दिशी
मलिन हुई है द्दृष्टि
खुली सड़क पर लाज पड़ी है
अवस्त्रों में लिपटी
दिन-दिन बढ़ते हौंसले
क्यूँ ना रोके सरकार
ऐसी भी मजबूरी क्या है
क्यूँ बैठी लाचार
हल्ला कर जन चार दिवस का
खबरों का करें गरम बाज़ार
नारी तुझको तजना होगा
सहना अत्याचार
दुराचार पौरुष का करना
होगा अब संघार
लाज-शर्म भय का कवच
ना बन पाई तेरी ढाल
उठा हाथ में खड़ग बदल ले
अब तू अपनी चाल
धरना होगा रूप तुझे अब
काली रण चंडी का
होगा तभी तमाम काम
इन दानवों की मंडी का
अंधा हो रहे चाहे कानून
बोले सर चढ़ तेरा जुनून
शुंभ-निशुंभ से कई दानव फिर
लथपथ होंगे अपने खून
बदला ना कानून वर्क पर
बदल दिया अभिप्राय
कितना भी अपराध घना हो
ले दे कर टल जाए
देख ना अब कुछ टलने पाए
ना दु:शासन कोई फलने पाए
आज उठा ले हाथ में झंडा
क्रोध ना होने पाए ठंडा
यदि ना रुक पाया व्यभिचार
भ्रूण कोख से मेट ललन का
बदल के रख देना संसार
हाथ करोड़ों नारियों के मिल
मसल डालना यह दुराचार।