कहते हैं लोग कोई साथ नहीं निभाता
चिंता से पूछो कैसे नाता निभाया जाता
यह तो इक परछाई है कब अलग किसी से रह पाई है
विरला ही होगा जिसे इसने नहीं घेरा
सबको एक निगाह से देखे ना कोई तेरा-मेरा
देश बदलो चाहे प्रांत, चहल-पहल हो या एकांत
कितना भी दामन छुडाओ कब रहने दे यह शांत
सदा प्रतीक्षा में खड़ी पंथ निहारे
बिना हथियार ही बड़ी चोट मारे
रंग ना आकार ना इससे किसी को प्यार
बर्बस चिपटी रहे ज्यों चंदन लिपटे सांप
इससे जान छुड़ाने को किए सात समुंद्र पार
बिना टिकट वीज़ा बिना आ पहुँची मेरे द्वार
मुझे खुश देख हुई बहुत हैरान
आ बोली मेरे कान
अजी हमसे बचकर कहाँ जाइएगा
जहाँ जाइएगा वहीं पाइएगा
देखकर उसको यहाँ भी
रह गई मैं भौचक्की
विनम्रता का दामन ओढ़ा
बहुत हाथ-पैर जोड़ा
वह तो आदत से मजबूर
उसने कब पीछा छोड़ा
मुस्कुरा कर बोली
कभी तेरा दामन ना छोडेंगे हम
कसम चाहे लेलो खुदा की कसम
तुम हमसे दूर रहो यह नहीं आता रास
मेरा तुम्हारा तो चोली-दामन का साथ
चिंता को छोड़ दो जो तुम्हें उपदेश सुनाते हैं
वह भी लुक-छिप कर
दिन-रात मुझको ही ध्याते हैं
मेरा तो सब से बड़ा अजब है नाता
मर कर ही मुझसे कोई छूट पाता!