Tuesday, December 24, 2013

हाइकु तुषार


कुदरत का आलौकिक नजारा

 
क्या हिम वृष्टि
कायनात दमकी
चकित दृष्टि

 
चमका सूर्य
हीरों जड़ी शाखाएं
झलके नूर

 
हिम यूँ झड़ी
शाख-शाख लिपटी
माणिक लड़ी

 
हिम क्या आई
दिन के उजाले में
चाँदनी छाई

 
तुषाराघात
आलौकिक कमाल
रात में प्रात:

 
कंचन काया
हिम आभूषणों ने
वन सजाया

 
बत्तियाँ जलीं
तुषार के होठों पे
हँसी खिली

 
बर्फीली आँधी
नग्न खड़े पेड़ों के
प्राण ले मानी

 

 

Friday, December 20, 2013

सुशीत सेदोका

सर्द ऋतु में प्रस्तुत हैं मेरे कुछ सुशीत सेदोका

आसमान ने
भरीं जो सर्द आहें
जमा लोक-जहान
काँपा ह्रदय
अवनि पर्वत का
नदी ताल निष्प्राण ।

लटका पाला
सिकुड़ गए दिन
सर्दी की आततायी
धूप कुन्दनी
बेबस हुई दीखे
ज्यों कृश परछाई ।

सूनी डाँड पे
भाग रहे हैं पाँव
क्षितिज पार बसे
रवि के गाँव
घनी धुँध में खड़ी
जमें रश्मि के पाँव।

कानन झीलें
अँधियारे में खोईं
कोहरे में हवाएं
पगडंडी भी
डर छिपि धुँध में
कैसे घर को जाएं।

शांत मना सी
पगडंडी है लेटी
चुप सी हवा खड़ी
जाड़े ने ताड़ा
चुप्पी छाई हाट में
शांत है हड़बड़ी।

ठगा भोर ने
सूरज लुका कहाँ
ओढ़ी धुँध रजाई
कंपित धरा
बावरे गगन ने
तुषार बरसाई।

निर्बाध फिरें
बर्फीली हवाएं आ
सीटियाँ बजातीं औ
झूम-झूम के
अपनी आज़ादी का
देखो जश्न मनातीं।