पाया जो तुम्हें
उमंग बनी मेरीखुशियों की बहार
गोद में लिया
ज्यों बेटे का शैशव
पुन: मिली सौग़ात।
देखा जो तुझे
मन गुदगुदायापाया बड़ा आन्नद
कस के तूने
अँगुली यूँ पकड़ी
ज्यों जन्मों का सम्बन्ध।
हर
लेती है
तेरी मुसकान यूँमेरी सब पीड़ाएं
कैसा बंधन
दीर्घ आयु की प्यास
सहसा जागी जाए।
भोली सी तेरी
मीठी प्यारी बातों मेंभरा है कैसा जादू
अनेकों ग़म
तेरी हँसी दे मेट
तू अनुपम भेंट।
तू नटखट
शैतान बड़ा परमेरी आँख का तारा
निज बेटे से
बढ़ कर लगे तू
रिश्ता है कैसा न्यारा।
ना हरि सेवा
नित नेम प्रभु काकैसे मोह में पड़ी
चित्त सुझावे
इसकी सेवा में ही
हरि भी मिल जाएं।
बहुत सुंदर कृष्णा जी!
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद सुमन जी।
Deleteसादर