उतर आता जब भी
मेरे ह्रदय उपवन मेंतुम्हारी यादों का
मोहक वसंत
ढुलक जाते हो तुम
मेरी गीली कोरों से
नेह की बूँद बन
रोम-रोम मेरा
महक जाता है
अहसासों की
संदली खुशबु से
उर कमल पर
तिर आते हो
मुलायम रेशमी
तुहिन कण से
दहक उठते हैं
रक्तिम कपोल
तुम्हारी मृदु स्मृतियों से
कर देते हैं झंकृत
अनजाने सुर कोई
ह्रदय की वीणा को
मदमाता मन
थिरकने लगता है
अचीनी थाप पर
बोया था जो रिश्ता कभी
उग आया है
मेरे ह्रदय पटल पर
आभास होता है ज्यों
कुछ पत्तियाँ भी
फूट आई हैं
प्रीत रंग की।
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