Monday, November 12, 2012

दीपावली

आज अमावस छिपा चाँद है
लगे प्रभा का ज्यों उपवास है
गहन तमस पसरा है चतुर्दिश
अपितु अलोक फिर भी अबाध है
निशा नवेली सजी दुल्हन सी
धरती से अम्बर तक फैला
जग-मग जग-मग सा उजास है
द्वार मुडेरें सुसज्जित लड़ियाँ
चमकें ज्यों कंचन की कणियाँ
उद्दीप्त वर्तिका नन्हें दीपों की
अंधकार की धार काटती
मोमबत्तियाँ और कंदील
दमक रही हैं तम को चीर
रंगोली माड़ी जब द्वार
झूम उठे फिर वंदनवार
गले मिल रहे बंधु-भाई
सरसाए सम्बंध मिठाई
अँजोरी में खुशी नहाई
हँसे अनार मुसकाई फुलझड़ीयाँ
पट-पट बजे पटाखों की लड़ीयाँ
देख सुनहरी छटा धरा पर
गणपति लक्ष्मी मुसकाने लगे
घर-घर जा जन-जन पर अपनी
कृपा आसीस लुटाने लगे
झिलमिल करते नित्य काश
खुशियों के यूँहीं दीप
अपने-पराए खुशियाँ नहाए
रहते सदा करीब।

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