Sunday, August 5, 2012

जीवन

जीवन तू क्या है जिसे हम समझ ना पाए
उन्मुक्त है गगन में या धरा पे बन्धन
अभिशाप है तू कोई या कोई अभिनन्दन
कोई हास या रुदन है जिसे हम समझ ना पाए
आशा है या निराशा है स्वपन या अभिलाषा
तू सत्य सा अटल है या जादुई तमाशा
कितना है तू अनोखा जिसे हम समझ ना पाए
पल-पल का तू विधाता प्रतिपल है तू मिटाता
कभी उथला कभी गहरा कभी बहता कभी ठहरा
तेरी गति न्यारी जिसे हम समझ ना पाए
कभी फूलों सा खिलता कभी पतझड़ सा झड़ता
कभी झूमें लता सा कभी काँटों सा चुभता
कभी तृण सा खड़ा है जिसे हम समझ ना पाए
तू प्रात: की किरण है या भोर का है तारा
तू चाँद है निशा का या बादल कोई आवारा
तेरे प्रकार कितने जिसे हम समझ ना पाए
कभी आँधी-तूफान कभी खुला आसमान
कभी शोले कभी ऒले कभी सोंधी ब्यार
तेरी महिमा आपार जिसे हम समझ ना पाए
कभी चंचल सी लहरें कभी तपता किनारा
कभी बालू सा झरता कभी पाहान सा ठहरा
तू कैसा मनमौजी जिसे हम समझ ना पाए
तू केवल भरम है या गहरा मर्म है
तू इतिहास कोई या कोई धरम है
यह उलझी सी गुत्त्थी जिसे हम समझ ना पाए
कभी बन-बन के टूटे कभी टूटों को जोड़े
कभी बिछुड़े मिलाए कभी दे-दे बिछोड़े
तू कितना निराला जिसे हम समझ ना पाए
तू खुशियों की सरगम या विरह का गीत
तू ह्रदयों की पीड़ा या मन का मीत
तेरा अजब संगीत जिसे हम समझ ना पाए
कभी प्रेम का सरोवर कभी नफ़रतों की दल-दल
कभी जीत का नगाड़ा कभी हार का बिगुल
यह कैसा चक्रव्यू है जिसे हम समझ ना पाए!

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