Thursday, August 22, 2013

आँसू


छिपती ना भीतर की पीड़ा

आँसू चुगली खोर

झट कोरों पे आन बैठते

मौन मचाएं शोर

बड़े सहोदर मन भावों के

पकड़े रखते डोर

व्यथा ह्रदय की लाख छिपाऊँ

पकड़ा देते छोर

हर दुख-सुख में पिघल पड़ें

दिल के हैं कमज़ोर

जन्म के पहले पल के साथी

नयन गाँव ही ठौर

दुख संताप दगा दें जब अपने

फिर धरें रूप कठोर

अंतरमन के घावों पे, करते

चुपचाप टकोर

यूँ तो जीवन यात्रा में मिले

मित्र कई बेजोड़

दिल पे पक्की यारी की बस

यही लगाएं मोहर।

अंत समय तक साथ ना छोड़ें

इन सा मित्र ना और।

 

 

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