ईर्षा की आग
लग जाए दिल में
भड़कती अखंड
होती प्रचंड
रिश्ते हों खंड-खंड
लुटे चैन आन्नद।
द्वेष भट्टी में
लगे जो दहकने
प्रतिशोध की आग
भस्म विवेक
धारे विष रसना
दानव जाए जाग।
तीर लगे जो
निकल कमान से
हो जाता उपचार
तीर द्वेष का
बेंध जाए यदि, तो
नहीं रोगोपचार।
बोल को बोलो
सोच समझ कर
बोल ना हो दोधार
जाँच-परख
तुले बुद्धी बाट से
सही नपेगा भार।
प्रतिकार की
अग्नि कभी भड़केकरती नुक़सान
शब्द बाण से
घायल होती आत्मा
हों सम्बन्ध निष्प्राण।
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